कौन आया मेरी तन्हाई में
न कोई अक्स
न आवाज़
न शक्लो-सूरत
मगर रौशनी सी खिल आई
कि जैसे धूप के कुछ फूल मुस्कुराने लगे
हवा ने साज सजाए हैं
जैसे चुपके से
जबकि आहट ही हुई थी कोई बाजू में मेरी
दिलो दिमाग में भूचाल सा आया था ,
मगर , मेरी तन्हाई,
जो बेताब थी ,
अब चौंक पड़ी
मौत का खौफ भी शामिल हुआ अहसासों में
एक पल
खोज रही थी जिन्दगी मेरी कि कोई
मिले मौका
मुस्कुरा ही पड़ेगी खुलकर।
न कोई अक्स
न आवाज़
न शक्लो-सूरत
मगर रौशनी सी खिल आई
कि जैसे धूप के कुछ फूल मुस्कुराने लगे
हवा ने साज सजाए हैं
जैसे चुपके से
जबकि आहट ही हुई थी कोई बाजू में मेरी
दिलो दिमाग में भूचाल सा आया था ,
मगर , मेरी तन्हाई,
जो बेताब थी ,
अब चौंक पड़ी
मौत का खौफ भी शामिल हुआ अहसासों में
एक पल
खोज रही थी जिन्दगी मेरी कि कोई
मिले मौका
मुस्कुरा ही पड़ेगी खुलकर।
3 comments:
बहुत ही सुन्दर रचना !
www.mathurnilesh.blogspot.com
nice...took 2-3 readings to understand!!
bahut sunder.
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